शनिवार, 2 अप्रैल 2022

4 महर्षि व्यास का असंतोष

 

जब सर्वज्ञ एवं सर्वशक्तिमान् व्यासभगवान्ने नारदजीका अभिप्राय(भगवान के गुणोंका कीर्तन और कीर्ति का वर्णन करना हैं)सुन लिया। फिर उनके चले जानेपर उन्होंने चिंतन किया।
ब्रह्मनदी सरस्वतीके पश्चिम तटपर शम्याप्रास नामका एक आश्रम है। वहाँ ऋषियोंके यज्ञ चलते ही रहते हैं ।

 वहीं व्यासजीका अपना आश्रम है। उसके चारों ओर बेरका सुन्दर वन है। उस आश्रममें बैठकर उन्होंने आचमन किया और स्वयं अपने मनको समाहित किया।

उन्होंने भक्तियोगके द्वारा अपने मनको पूर्णतया एकाग्र और निर्मल करके आदिपुरुष परमात्मा और उनके आश्रयसे रहनेवाली मायाको देखा।

इसी मायासे मोहित होकर यह जीव तीनों गुणोंसे अतीत होनेपर भी अपनेको त्रिगुणात्मक मान लेता है और इस मान्यताके कारण होनेवाले अनर्थोंको भोगता है।

 इन अनर्थोकी शान्तिका साक्षात् साधन है - केवल भगवान्‌का भक्ति योग । परन्तु संसारके लोग इस बातको नहीं जानते। 

यही समझकर उन्होंने इस परमहंसोंकी संहिता श्रीमद्भागवतकी रचना की।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

7 अश्वत्थामा द्वारा द्रोपदी के पुत्रों का मारा जाना और अर्जुन के द्वारा अश्वत्थामा का मान मर्दन

 अश्वत्थामा द्वारा द्रोपदी के पुत्रों का मारा जाना और अर्जुन के द्वारा अश्वत्थामा का मान मर्दन